ऐतिहासिक फैसलों के लिए जानें जाएंगे चीफ जस्टिस गोगोई

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नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई रविवार को औपचारिक रूप से रिटायर हो जाएंगे। चीफ जस्टिस के रूप में उनका कार्यकाल करीब साढ़े 13 महीने का रहा। इस दौरान उन्होंने कुल 47 फैसले सुनाए, इनमें से कई फैसले ऐतिहासिक रहे, इन फैसलों के लिए उनको हमेशा ही याद किया जाएगा। इनमें अयोध्या विवाद, तीन तलाक, चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में, सरकारी विज्ञापन में नेताओं की तस्वीर पर पाबंदी लगाने जैसे फैसले शामिल थे। इसके अलावा तीन तलाक पर भी किया गया फैसला शामिल है। उन्होंने अक्टूबर 2018 में भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी।

एनडीए सरकार के खिलाफ कांग्रेस की विपक्षी दलों के साथ रैली की तैयारी

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों और अयोध्या फैसले के परिप्रेक्ष्य में दिसंबर के पहले हफ्ते राष्ट्रीय राजधानी में प्रस्तावित एक रैली की तैयारियों का जायजा लेने के लिए यहां बैठक की। पार्टी सूत्रों ने शनिवार को इसकी जानकारी दी। शुक्रवार को, कई नेताओं ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की और रैली की रूपरेखा पर उनसे चर्चा की।

बैठक में पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, प्रियंका गांधी वाड्रा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री क्रमश: अशोक गहलोत और भूपेश बघेल, प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष शामिल हुए।

राफेल डील याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट से खारिज होने के बाद कांग्रेस ने अब जेपीसी जांच की जरूरत बतायी

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नई दिल्ली: राफेल डील की जांच की मांग वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट की ओर से खारिज करने के बाद भी इस पर आरोपों का दौर खत्म नहीं हुआ। एक तरफ बीजेपी ने सवाल उठाने वालों से माफी मांग की है तो कांग्रेस ने अब जेपीसी जांच की जरूरत बताई है। राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ही एक पैराग्राफ का जिक्र करते हुए यह बात कही है। राहुल गांधी ने ट्वीट कर राफेल डील की सुनवाई करने वाली बेंच में शामिल जस्टिस जोसेफ की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने जांच के दरवाजे खोले हैं। उनके अलावा कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जश्न म

743 करोड़ हासिल कर भाजपा सबसे आगे, कांग्रेस व अन्‍य दलों से तिगुना चुनावी चंदा

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भारतीय जनता पार्टी को वित्तीय वर्ष 2018-19 में 20 हजार रुपये से अधिक के दान में 743 करोड़ रुपये मिले। यह राशि कांग्रेस समेत छह राष्ट्रीय दलों को प्राप्त हुई चंदे की राशि से तीन गुना अधिक है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 31 अक्तूबर को चुनाव आयोग के सामने दायर हलफनामे में भाजपा ने इस बात का खुलासा किया था। इस जानकारी को सोमवार को सार्वजनिक किया गया। भाजपा को प्राप्त 743 करोड़ रुपये की राशि कांग्रेस सहित अन्य सभी छह राष्ट्रीय दलों को इस तरह के मिले दान में प्राप्त संयुक्त राशि से तीन गुना अधिक है। 

कांग्रेस को चुनावी दान में 147 करोड़ रुपये मिले हैं। यह राशि भाजपा को मिले चंदे का सिर्फ पांचवा हिस्सा ही है। भाजपा को साल 2018-19 में सबसे ज्यादा दान प्रोग्रेसिव इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट द्वारा दिया गया। इसने भाजपा को 357 करोड़ की राशि चंदे में दी। 

चुनावी बॉन्ड व्यवस्था की घोषणा सरकार ने साल 2017 के बजट में की गई थी। इस साल के बजट ने लोगों को अपने पसंदीदा राजनीतिक दल के साथ जुड़ने का एक नया तरीका पेश किया। चुनावी बॉन्ड न तो टैक्स में छूट देते हैं और न ही ब्याज कमाने का साधन हैं। इसे चुनावी फंडिंग में सुधार के तरीके के रूप में प्रस्तावित किया गया है।

निश्चित पार्टियों के लिए एक अधिसूचित बैंक द्वारा चुनावी बॉन्ड जारी किए जाएंगे। यदि आप किसी राजनीतिक पार्टी को दान या चंदा देने के इच्छुक हैं, तो आप इन बॉन्ड को डिजिटल रूप से या चेक के माध्यम से भुगतान करके खरीद सकते हैं। फिर आप एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी को उपहार या चंदा देने के लिए स्वतंत्र हैं। 

बॉन्ड संभावित रूप से वाहक बॉन्ड होंगे और देने वाले की पहचान सार्वजनिक नहीं होगी। यहां तक की चंदा प्राप्त कर रही पार्टी को भी दानदाता के बारे में पता नहीं चलेगा।

संबंधित पार्टी इन बॉन्ड को अपने बैंक खातों के माध्यम से रुपये में बदल सकती है। इसके लिए उपयोग किए गए बैंक खाते की जानकारी चुनाव आयोग को देना अनिवार्य है। बॉन्ड को एक निश्चित समय अवधि के भीतर ही बैंक में जमा किया जा सकता है। विलंब होने पर इसका भुगतान नहीं हो सकता। इन बॉन्ड में भुगतान होने की समय सीमा निश्चित होती है। 

केवल भारतीय रिजर्व बैंक को ही इन बॉन्डों को जारी करने की अनुमति है, जिन्हें अधिसूचित बैंकों के माध्यम से बेचा जा रहा है।

वर्तमान समय में देश के अधिकांश राजनीतिक दल गुमनाम स्रोतों से नकद दान या चंदा स्वीकार करती हैं। इसमें भ्रष्टाचार और गलत ढंग से आय होने की संभावना ज्यादा रहती है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के एक रिपोर्ट के अनुसार इलेक्ट्र्रोरल बॉन्ड जारी होने से पहले विभिन्न पार्टियों के फंड में लगभग 70 फीसदी हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आता था।

वर्तमान में, राजनीतिक दलों को आयकर विभाग को 20000 से अधिक के किसी भी चंदे की सूचना देना आवश्यक है। लेकिन पार्टियां इससे बचने के लिए कम मात्रा में नकद चंदे को प्राप्त कर धन भी कमा लेती हैं और आयकर विभाग को जानकारी देने से भी बच जाती हैं।

चुनावी बॉन्ड के जरिए दानदाता बैंक के माध्यम से राजनैतिक दलों को चंदा दे सकेंगे। दानदाता की जानकारी केवल बॉन्ड जारी करने वाले बैंक को ही रहेगी।

बॉन्ड एक हजार, 10 हजार 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ के गुणकों में जारी किए जाते हैं। जो बैंकों के निर्दिष्ट शाखाओं में उपलब्ध होते हैं। उन्हें दानकर्ता द्वारा केवाईसी हुए खाते से खरीदा जा सकता है। दानकर्ता अपनी पसंद की पार्टी को बॉन्ड दान कर सकते हैं। इसे 15 दिनों के भीतर पार्टी के सत्यापित खाते में जमा करना आवश्यक है।

चीफ जस्टिस का ऑफिस भी सूचनाधिकार के दायरे में : उच्‍चतम न्‍यायालय का फैसला

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का ऑफिस भी कुछ शर्तों के साथ सूचना के अधिकार कानून (RTI) के दायरे में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसले में कहा कि सीजेआई का ऑफिस भी पब्लिक अथॉरिटी है। इसे सूचना के अधिकार कानून की मजबूती के लिहाज से बड़ा फैसला माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी जज RTI के दायरे में आएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह से साल 2010 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारदर्शिता के मद्देनजर न्यायिक स्वतंत्रता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जेएनयु फीस घटायी गई, विद्यार्थियों से कक्षाओं में लौटने की अपील

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नई दिल्ली: जेएनयू में हॉस्टल फीस वृद्धि के खिलाफ विश्वविद्यालय के छात्रों का विरोध के बाद प्रशासन ने इसमें कमी करने का आदेश देते हुए छात्रों से क्लास में लौटने की अपील की है। शिक्षा सचिव आर. सुब्रमण्यन ने बुधवार को ट्वीट कर बताया कि एग्जिक्यूटिव कमिटी ने हॉस्टल फीस में वृद्धि और अन्य नियमों से जुड़े फीस में बड़ी कटौती की है।

बीजेपी ने शिवसेना से रिश्ता तोड़ा है, शिवसेना ने नहीं : सुलह की संभावना?

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मुंबई: महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी के साथ गतिरोध की वजह से आखिरकार ऐन मौके तक सरकार नहीं बन पाई और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। हालांकि शिवसेना ने अभी भी बीजेपी से सुलह के दरवाजे खोल रखे हैं। इसका संकेत शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया। उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि बीजेपी ने शिवसेना से रिश्ता तोड़ा है, शिवसेना ने नहीं।

महाराष्ट्र : भाजपा सरकार नहीं बनायेगी, राज्यपाल ने शिवसेना को न्योता भेजा

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मुंबई : महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए राज्य के गर्वनर भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के सबसे बड़े दल भाजपा को निमंत्रण दिया था, लेकिन भाजपा ने यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि वह अकेले सरकार नहीं बना सकती है। इसके बाद राज्यपाल ने शिवसेना को सरकार बनाने की दावत दी है। इस बीच शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने बयान दिया है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में हर हाल में मुख्यमंत्री शिवसेना का बनेगा। यदि उद्धव जी ने कह दिया तो हर हाल में राज्य का मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही होगा।

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भारतीय चुनावों में आचार संहिता का अंकुश लानेवाले टीएन शेषन नहीं रहे

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नई दिल्ली: भारतीय चुनाव प्रणाली के बड़े सुधारक माने जाने वाले पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का रविवार को 87 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। चुनाव के समय सरकार और राजनीतिक दलों पर आचार संहिता के नियंत्रण का श्रेय टीएन शेषन को ही जाता है। उन्होंने चुनाव आयोग को उसकी ताकत से वाकिफ कराया और चुनाव सुधार लागू करके वास्तव में लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने का काम किया। 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला : जो हुआ, सो हुआ

Approved by Srinivas on Sat, 11/09/2019 - 23:29

:: श्रीनिवास ::

कोर्ट ने यह भी कहा कि 1949 में मूर्तियों को चुपके से मसजिद के अंदर रखना; फिर 1992 में मसजिद का ध्वंस गैरकानूनी था. क्या इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि दोनों अवसरों पर वह मुसलिमों के अधिकार में एक धार्मिक इमारत, एक मसजिद थी? यानी 1528 ई से लेकर 1992 तक वह मसजिद थी.

कहा/माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ के सर्वसम्मत फैसले का एक आधार एएसआई की रिपोर्ट है, जो उसने विवादित स्थल की खुदाई के बाद पेश की थी. लेकिन फैसले की जितनी जानकारी सामने आयी है, और जो मैं समझ सका हूं, उसके मुताबिक कोर्ट ने इतना तो माना कि उस स्थान के नीचे किसी मंदिर के अवशेष मिले थे. यह भी कि बाबरी मसजिद का निर्माण किसी समतल जमीन पर नहीं हुआ था. मगर यह भी नहीं माना कि वह मसजिद किसी मंदिर को तोड़ कर बनायी गयी थी.
जमीन समतल नहीं होने का कारण वहां किसी पुरानी इमारत का खंडहर होना भी हो सकता है.

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