उम्मीदों की बरसात करने वाली पुस्तक है- फैसले जो नज़ीर बन गये
भारतीय न्यायपालिका की स्वायत्तता एवं निष्पक्षता को लेकर चाहे न्यायविदों, राजनीतिज्ञों या आम आदमी के बीच जितनी भी बहस होती रही हों या समय-समय पर देश के वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा न्यायपालिका पर गंभीर टिप्पणियां की जाती रही हों, पर सच यह है कि भारतीय जनता न्याय के लिए अंततः सर्वोच्च न्यायालय की ही बांट जोहती है। निचली अदालतों से लगातार निराश हुए व्यक्तियों व समूहों को भी सर्वोच्च न्यायालय से ही समय-समय पर राहत मिलते रहा है। यही कारण है कि आज भी भले जिस रूप में भी, भारतीय लोकतंत्र की शाख बची हुई है। लोकतंत्र की अनिवार्य शर्तों में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि समाज के हर तबके को समुचित अधिकार प्