नये झारखंड राज्य में फा. स्टेन स्वामी मानव अधिकार आंदोलन का चेहरा बन कर उभरे। 1991 में चाईबासा जाने के बाद सबसे पहले उन्होंने सिंहभूम में जारी पुलिसिया जुल्म के खिलाफ स्थापित मानव अधिकार संगठन ‘‘जोहार’’ का पुनर्गठन किया और राज्य प्रायोजित मानव अधिकार हनन के मामलों को उठाना शुरू किया। उन्होंने सिंहभूम में हुए पुलिसिया जुल्म का अनुसंधान एवं कानूनी हस्तक्षेप किया। वे जब 2001 में रांची आये तबतक मानव अधिकार आंदोलन का चेहरा बन चुके थे। उस समय वे एक मात्र व्यक्ति थे, जिन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में पहचान मिली थी। तीन दशक तक वे राज्य प्रायोजित मानव अधिकार हनन पर निरंतर हस्तक्षेप करते रहे। इस दौरान उन्होंने राज्य प्रायोजित मानव अधिकार हनन के मामलों का अनुसंधान एवं कानूनी हस्तक्षेप किया। इसके अलावा लोगों को जागरूक किया तथा अपने वक्तब्या एवं लेखन के द्वारा मानव अधिकार हनन के मुद्दों को उठाकर कई लोगों को न्याय दिलाया।
5 जुलाई 2021 को भारत के इतिहास में और एक काला अध्याय जुड़ गया। धरती का सबसे बड़ा लोकतंत्र ने राजसत्ता से असहज सवाल पूछने वाले 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की संस्थागत हत्या कर दी। वे एक निडर, संवेदनशील, दृढ़संकल्पी, सशक्त एवं तटस्थ मानवाधिकार कार्यकर्ता, आंदोलनकारी, प्रशिक्षक, शोधकर्ता एवं लेखक थे। उनका जन्म 26 अप्रैल 1937 को तामिलनाडु के त्रिची में हुई थी। वे मई 1957 में येसु समाज से जुड़े एवं 1965 में पहली बार झारखंड आये और यहीं के हो गए। हालांकि उन्होंने विधिवतरूप से 1991 में आदिवासियों के बीच काम करना शुरू किया। वे ईसाई धर्मगुरू जरूर थे लेकिन धार्मिक गतिविधियों से दूर आदिवासियों के मानव अधिक