'कीर्तिगान’ : हत्यारी भीड़ में बदलते जा रहे देश और समाज की त्रासद कथा (पुस्तक समीक्षा)
आखिरकार ‘कीर्तिगान’ को किसी तरह पढ़ गया. ‘किसी तरह’ इसलिए नहीं कि ऊबाऊ है. इसलिए कि कई बार रुक गया, आगे पढ़ने की हिम्मत नहीं हुई. अंत के करीब पहुंच कर दो दिन छोड़ दिया. और पूरा पढने पढ़ने के बाद मन विषाद से भर गया. देर तक उद्यिग्न रहा. जिसमें भी थोड़ी संवेदना बची होगी, उसकी हालत उपन्यास के एक प्रमुख पात्र एक पत्रकार सनोद, जो अपने चैनल के लिए हाल के बर्षों में हुई भीड़-हत्या (मॉबलिंचिंग) की घटनाओं का ब्यौरा जुटाने वाली टीम में शामिल है, जैसी हो सकती है.