गांधी को ये क्या मारेंगे? मगर..
ऐसा लगता है कि गांधी को सही मानने और संघ की आलोचना करनेवाले हम सब विफल रहे हैं. क्या ऐसा नहीं लगता कि धर्मांधता और बहुसंख्यकवाद का विरोध और समरसता, समानता, बहुलतावाद पर हमारे तर्क आम आदमी के गले नहीं उतर रहे; या हम अपनी बात ढंग से नहीं रख पा रहे; या इन मूल्यों के प्रति हमारी निष्ठा कमजोर है, कि हमारी करनी और कथनी में फर्क है?
महात्मा गांधी के पुतले को किसी ने गोली मार दी, यह शर्मनाक और दुखद जितना भी हो, मूलतः यह समस्या या चिंता की बात नहीं है. यह कृत्य कानूनन अपराध है या नहीं और ऐसा करनेवालों के खिलाफ पुलिस क्या कार्रवाई कर रही है; या विभिन्न दलों के नेता-सांसद इस पर आदि क्या बोल रहे हैं, मेरी समझ से यह भी हमारे लिए कोई विशेष गंभीर और चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए.